ड्रैकुला 10
Part - 1
ये दुनियाँ बड़ी बेरहम है भाई
इस कहानी की शुरुआत सन 1492 ई0 मे इटली के छोटे से गाँव रोमानियाँ से हुई । जहां का शासक विश्व का सबसे खतरनाक पिशाच ड्रैकुला था । जिसके आतंक से रोमानिया गाँव ही नहीं बल्कि पूरा इटली काँपता था । उसने अपने पूर्वजो से एक अनोखा वरदान मिला था कि सूरज उसको जला नहीं सकती और चंद्रमा उसे जमा नहीं सकती । वह अपने दस हजार पूर्वजो मे सबसे अनोखा था इसलिये उसके माता-पिता ने उसका नाम ड्रैकुला 10 रखा। वह रोमानियाँ गाँव से लगभग 160 किलो मीटर दूर एक पुराने किले मे रहा करता । जो दिखने मे एक शानदार महल की तरह था और उसके पहेरदार थे खूंखार भेड़िये । एक दिन ड्रैकुला के माता-पिता को अचानक मुक्ति मिल गयी । वह जाते समय ड्रैकुला से कुछ कहना चाहते मगर ड्रैकुला अपने कान मे मोबाइल की लीड लगाकर मजे से गाना सुन रहा था । इसलिये अपने माता –पिता की बात सुन नहीं पाया । उनके जाने के बाद ड्रैकुला उस महल मे अकेला पड़ गया । दिन मे ड्रैकुला महल के अंदर घूम करता और रात मे अपनी ट्रक मे बैठकर किले से बाहर । क्योकि ड्रैकुला अपने पूर्वजो की तरह आसमान मे उड़ नहीं सकता था । आये दिन गाँव मे औरते-बच्चे और जानवर गायब होने लगे और दूसरे दिन उनकी लाशे किले के बाहर पड़ी हुई मिली, मगर किसी की हिम्मत नहीं थी कि किले के अंदर ताक-झाक कर सके। उस किले को देखते ही सब गाँव वालों के पैर अपने आप काँपने शुरू हो जाते । इसलिये सब उस किले से दूर ही रहने लगे । इसी का फायदा उठाकर ड्रैकुला उस गाँव पर लगातार हमला किया जा रहा था । एक दिन सब गाँव वाले परेशान होकर इटली के सम्राट ऐरिक के महल मे गये । सारे गाँव वाले सम्राट ऐरिक से दुखी आवाज मे कहते है कि“ महाराज हमारी रक्षा कीजिये उस शैतान ड्रैकुला से । वह हमारे आंखो के सामने से औरते-बच्चे और जानवरो को उठा ले जाता है । दिन पे दिन हमारे जानवर भी गायब होते जा रहे। अगर यही हाल रहा तो पूरा का पूरा गाँव खत्म हो जायेगा ।” सम्राट ऐरिक सब गाँव वालों से कहते है कि “ हम कल ही ड्रैकुला के महल पर हमला करके उसका आतंक हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर देगे ।” उनकी बात पर विश्वास करके सारे गाँव वाले वापस अपने-अपने घर लौट आये । अगले दिन ही सम्राट ऐरिक अपनी सेना कि छोटी सी टुकड़ी के साथ ओमान चर्च मे गये । ओमान चर्च के पादरी सम्राट ऐरिक को पहली बार अपने यहाँ देखकर बहुत खुश हुए और यहाँ पर आने के कारण पूछा । तब सम्राट ऐरिक ओमान चर्च के पादरी से कहते है कि “ ड्रैकुला का आतंक लगातार बढ़ता चला जा रहा है । अगर उस रोक नहीं गया तो पूरी इटली खत्म हो जायेगी।” इतने मे एक आवाज सुनायी दी आप सही कह रहे सम्राट ऐरिक। यह आवाज सुनते ही सब पीछे मुड़े । तब उन्हे सफेद कपड़ा पहने हुआ एक पादरी दिखायी दिया – वो था प्रधान पादरी ओनल । प्रधान पादरी ओनल को सामने देखकर सम्राट ऐरिक उस से कहते है कि “ आप से मिलकर खुशी हुई प्रधान पादरी ओनल ।” सम्राट ऐरिक पादरी ओनल से कहता है कि “ उस बदमाश और शक्तिशाली पिशाच को कैसे पकड़े और किसमे कैद करे । यही तो सबसे बड़ी समस्या है हमारे पास ।” पादरी ओनल दीवार पर टंगी मशाल को उतारकर जलाते हुए सम्राट ऐरिक से कहते है कि “ इस समस्या का उपाय भी है हमारे पास ।” इतना कहकर पादरी ओनल अपने शिष्य और सम्राट ऐरिक को साथ लेकर एक विशाल पत्थर की मूर्ति के पास पहुंचे । जिसने अपने दोनों हाथो से एक पत्थर का प्याला पकड़ी हुई थी । प्रधान पादरी अपने शिष्य से उस प्याला मे पूरा पानी भरने को कहा । उनकी बात मानकर सब ने उस प्याला को पूरा पानी से भर दिया । अचानक विशाल मूर्ति मे कम्पन होनी शुरू हो गयी और देखते ही देखते वो विशाल मूर्ति जमीन मे धँसने लगी । तब सबके सामने नजर आया एक अंधेरी गुफा । प्रधान मंत्री सब को साथ लेकर सीढ़ियो से होते हुए एक विशाल तहखाने मे पहुंचे। चारो तरफ अंधकार देखकर सम्राट ऐरिक प्रधान पादरी ओनल से कहते है कि “ आप यहाँ पर क्या दिखाने लाये प्रधान पादरी ओनल है।” तब प्रधान पादरी ओनल सम्राट ऐरिक से कहते है कि “ बस आप देखते जाइये ।” इतना कहकर अपने हाथ मे ली हुई मशाल से सुखी नाली मे आग लगा दी । दरअसल उन नाली मे तैल भरा हुआ था जो आग पाते ही जल उठा और उसकी रोशनी से पूरा तहखाना चमकने लगा । पादरी ओनल लकड़ी पर चढ़ा हरे रंग का चादर बड़ी तेजी के साथ खीच कर जमीन पर फेक दिया । तब सम्राट ऐरिक के सामने आया सुनहरे रंग का ताबूत । जिसे देखकर सम्राट ऐरिक पादरी ओनल से कहते है कि “ ये तो कोई मामूली सा ताबूत लग रहा है ।” पादरी ओनल सम्राट ऐरिक से कहता है कि “ ये कोई मामूली ताबूत नहीं है बल्कि इसे पवित्र लकड़ी से बनाया गया और इसके ऊपर सोने के स्याही से जादुई शब्द लिखे गये है । पवित्र ताबूत ड्रैकुला को बाहर आने नहीं देगा और जादुई शब्द उसको लंबी नीद मे हमेशा सुलाये रखेगी ।” सम्राट ऐरिक उस सुनहरे ताबूत को छूकर पादरी ओनल से कहता है कि “ ये तो वाकई मे एक शानदार ताबूत है ।” उस शानदार ताबूत को बग्घी मे रखकर सम्राट ऐरिक और पादरी ओनल ड्रैकुला को पकड़ने के लिए निकल पड़े । किले तक पहुँचते-पहुँचते शाम हो गयी । तभी वहाँ पर तेज हवाये बहने लगी और आस-पास के जंगलो से भेड़ियो की आवाज़े सुनायी देने लगी । चारो तरफ अंधेरा देखकर सेना और पादरी के शिष्य घबराने लगे । सब अपने मन ही मन सोचने लगे कि “ रात मे तो ड्रैकुला तो और भी शक्तिशाली हो जाता है ।” किले के ऊपर पर कड़कती हुई बिजली को देखते ही सब लोग धीरे-धीरे पीछे हटने लगे । यह देखकर सम्राट ऐरिक और पादरी ओनल सब से कहते है कि “ डरकर या घबराकर पीछे हटने की कोई जरूरत नहीं । क्योकि आज परमेशवर की शक्ति हमारे साथ है और ड्रैकुला का आखिरी दिन भी ।”